गुरुवार, 6 मई 2010

उड़न पाखी

मेरा नाम पाखी है,

चाहती हूँ ,

दूर गगन तक पंख खोल,

सीमान्त छु,

फिर लौट कर,

घर सो जायुं....

बाबा मेरे-

आश में,

माँ मेरी ,

धरकन बनी,

ता उम्र मुझ में,

गुदगुदी बन,

हँसते रहें...

2 टिप्‍पणियां:

  1. पाखी पर कित्ती सुन्दर कविता. ..अच्छी लगी. कभी 'पाखी की दुनिया' की भी सैर पर आयें .

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